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Showing posts from December, 2016

|| सृष्टि रचना ||

अनादि परमात्म तत्त्व ब्रह्म से यह सब कुछ उत्पन्न हुआ  |  ब्रह्म में स्फुरण हुआ कि " ऐकोअहम बहु स्याम " मैं अकेला हूँ  ,  बहुत हो जाऊं  |  उसकी यह इच्छा ही शक्ति बन गई  |  शक्ति के द्वारा दो प्रकार की सृष्टि उत्पन्न हुई - एक जड  ,  दूसरी चेतन  |  जड सृष्टि का संचालन करने वाली शक्ति  '  प्रकृति  '  और चेतन सृष्टि का संचालन करनेवाली शक्ति का नाम  '  सावित्री  '  है  |  ब्रह्म की इस स्फुरणा  ,  इच्छा या शक्ति को ही ब्रह्म - पत्नी कहते हैं  |  इस प्रकार ब्रह्म एक से दो हो गया  |  अब उसे लक्ष्मी - नारायण  ,  सीता - राम  ,  राधे - श्याम  ,  उमा - महेश  ,  शक्ति - शिव  ,  माया - ब्रह्म  ,  प्रकृति - पुरुष [ परमेश्वर ] आदि नामों से पुकारने लगे  |  श्रुति कहती है की सृष्टि के आरंभ में परमात्मा की इच्छा हुई  '  मैं एक से बहुत हो जाऊं  ' |  यह इच्छा  ,  नाभि द...

ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना

|| सृष्टि रचना [ प्रथम ] || अनादि परमात्म तत्त्व ब्रह्म से यह सब कुछ उत्पन्न हुआ | ब्रह्म में स्फुरण हुआ कि " ऐकोअहम बहु स्याम " मैं अकेला हूँ , बहुत हो जाऊं | उसकी यह इच्छा ही शक्ति बन गई | शक्ति के द्वारा दो प्रकार की सृष्टि उत्पन्न हुई - एक जड , दूसरी चेतन | जड सृष्टि का संचालन करने वाली शक्ति ' प्रकृति ' और चेतन सृष्टि का संचालन करनेवाली शक्ति का नाम ' सावित्री ' है | ब्रह्म की इस स्फुरणा , इच्छा या शक्ति को ही ब्रह्म - पत्नी कहते हैं | इस प्रकार ब्रह्म एक से दो हो गया | अब उसे लक्ष्मी - नारायण , सीता - राम , राधे - श्याम , उमा - महेश , शक्ति - शिव , माया - ब्रह्म , प्रकृति - पुरुष [ परमेश्वर ] आदि नामों से पुकारने लगे | श्रुति कहती है की सृष्टि के आरंभ में परमात्मा की इच्छा हुई ' मैं एक से बहुत हो जाऊं ' | यह इच्छा , नाभि देश में से निकलकर स्फुटित हुई अर्थात कमल की लतिका उत्पन्न हुई और उसकी कली खिल गई | इस कमल पुष्प पर ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं | ये ब्रह्मा सृष्टि - निर्माण की त्रिदेव शक्ति का प्रथम अंश है |   अब ब्रह्माजी का कार्य आरंभ हो...

जनेऊ क्या है ?

आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है। यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। तीन सूत्र क्यों : जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और  यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है। नौ तार : यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। पांच गांठ : यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है। ...