Skip to main content

|| सृष्टि रचना ||



अनादि परमात्म तत्त्व ब्रह्म से यह सब कुछ उत्पन्न हुआ ब्रह्म में स्फुरण हुआ कि " ऐकोअहम बहु स्याम " मैं अकेला हूँ बहुत हो जाऊं उसकी यह इच्छा ही शक्ति बन गई शक्ति के द्वारा दो प्रकार की सृष्टि उत्पन्न हुई - एक जड दूसरी चेतन जड सृष्टि का संचालन करने वाली शक्ति प्रकृति और चेतन सृष्टि का संचालन करनेवाली शक्ति का नाम सावित्री है ब्रह्म की इस स्फुरणा इच्छा या शक्ति को ही ब्रह्म - पत्नी कहते हैं इस प्रकार ब्रह्म एक से दो हो गया अब उसे लक्ष्मी - नारायण सीता - राम राधे - श्याम उमा - महेश शक्ति - शिव माया - ब्रह्म प्रकृति - पुरुष [ परमेश्वर ] आदि नामों से पुकारने लगे श्रुति कहती है की सृष्टि के आरंभ में परमात्मा की इच्छा हुई मैं एक से बहुत हो जाऊं ' | यह इच्छा नाभि देश में से निकलकर स्फुटित हुई अर्थात कमल की लतिका उत्पन्न हुई और उसकी कली खिल गई इस कमल पुष्प पर ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं ये ब्रह्मा सृष्टि - निर्माण की त्रिदेव शक्ति का प्रथम अंश है | अब ब्रह्माजी का कार्य आरंभ होता है उन्होंने दो प्रकार की सृष्टि उत्पन्न की - एक चेतन दूसरी जड चेतन शक्ति के अंतर्गत सभी जीव आ जाते हैं जिनमें इच्छा अनुभूति अहम - भावना पाई जाती है चेतन की एक स्वतंत्र सृष्टि है जिसे विश्व का प्राणमय कोष कहते हैं निखिल विश्व में एक चेतन तत्त्व भरा हुआ है जिसे प्राण नाम से पुकारा जाता है विचार संकल्प भाव इस प्राण तत्त्व के तीन वर्ग हैं और सत रज तम ये तीन इसके वर्ण हैं इन्हीं तत्त्वों को लेकर आत्माओं के स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीर बनते हैं सभी प्रकार के प्राणी इसी प्राण - तत्त्व से चेतनता एवं जीवन सत्ता प्राप्त करते हैं |जड सृष्टि निर्माण के लिए ब्रह्माजी ने पञ्चभूतों का निर्माण किया पृथ्वी जल वायु तेज और आकाश के द्वारा विश्व के सभी परमाणु- मय पदार्थ बने प्राणियों के स्थूल शरीर भी इन्हीं प्रकृति - जन्य पञ्च- तत्त्वों के बने होते हैं जड सृष्टि का आधार परमाणु और चेतन सृष्टि का आधार संकल्प है दोनों ही आधार अत्यंत सूक्ष्म और अत्यंत बलशाली हैं इनका नाश नहीं होता केवल रूपान्तर होता रहता है ब्रह्मा निर्विकार परमात्मा की शक्ति है जो सृष्टि का निर्माण करती है इस निर्माण कार्य को चालू करने के लिए उसकी दो भुजाएं हैं जिन्हें संकल्प और परमाणु शक्ति कहते हैं संकल्प शक्ति चेतन सत - संभव होने से ब्रह्मा की पुत्री है परमाणु शक्ति स्थूल क्रियाशील एवं तम - संभव होने से ब्रह्मा की पत्नी है इस प्रकार गायत्री और सावित्री ब्रह्मा की पुत्री तथा पत्नी नाम से प्रसिद्ध हुई उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है की पहले एक ब्रह्म था उसकी स्फुरणा से आद्यशक्ति का आविर्भाव हुआ इस आदिशक्ति का नाम ही गायत्री है | ब्रह्मशक्ति के तीन टुकड़े - [ १ ] सत [ २ ] रज [ ३ ] तम इन तीन नामों से पुकारे जाते हैं सत का अर्थ है - ईश्वर का दिव्य तत्त्व तम का अर्थ है - निर्जीव पदार्थों में परमाणुओं का अस्तित्त्व रज का अर्थ है - जड पदार्थों और ईश्वरीय दिव्य तत्त्व के समिश्रण से उत्पन्न हुई आनंददायक चेतन्यता ये तीन तत्त्व स्थूल सृष्टि के मूलकारण हैं इनके उपरान्त स्थूल उपादान के रूप में पञ्चमहाभूत तथा इनके पञ्चतन्मात्राओं द्वारा सृष्टि का सारा कार्य चलता है | गायत्री को वेदमाता कहा जाता है क्योंकि चारों वेद इसीसे प्रकट हुए हैं गायत्री वह देवी शक्ति है जिससे संम्बंध स्थापित करके मनुष्य अपने जीवन - विकास के मार्ग में बड़ी सहायता प्राप्त कर सकता है |गीता [ श्लोक ९ / १० ] में भगवान कहते हैं " हे अर्जुन ! मुझ अधिष्ठाता के सकाश से प्रकृति चराचर सहित सर्व जगत को रचती है और इस हेतु से ही यह संसारचक्र घूम रहा है 
|" 

Comments

Popular posts from this blog

प्राचीनकाल की महत्वपूर्ण पुस्तकें in Sanskrit

1-अस्टाध्यायी - पांणिनी 2-रामायण - वाल्मीकि 3-महाभारत - वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र - चाणक्य 5-महाभाष्य - पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र- नागार्जुन 7-बुद्धचरित - अश्वघोष 8-सौंदरानन्द - अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र - वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता - भास 11-कामसूत्र - वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम् - कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्- कालिदास 14-विक्रमोउर्वशियां - कालिदास 15-मेघदूत - कालिदास 16-रघुवंशम् - कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम् - कालिदास 18-नाट्यशास्त्र - भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम - विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम् - शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त - आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता - बरामिहिर 23-पंचतंत्र। - विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर - सोमदेव 25-अभिधम्मकोश - वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस - विशाखदत्त 27-रावणवध। - भटिट 28-किरातार्जुनीयम् - भारवि 29-दशकुमारचरितम् - दंडी 30-हर्षचरित - वाणभट्ट 31-कादंबरी - वाणभट्ट 32-वासवदत्ता - सुबंधु 33-नागानंद - हर्षवधन 34-रत्नावली - हर्षवर्धन 35-प्रियदर्शिका - हर्षवर्धन 36-मालतीमाधव - भवभूति 37-पृथ्वीराज विजय - जयानक 38-कर्पूरमंजरी - राजशेखर 39-काव्यमीमांसा -...

सिद्धिदात्री,नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’

नवमं सिद्धिदात्री च   नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’  💐 ॥देवी का नौवां स्वरूप ‘सिद्धिदात्री’ ॥ ॥सर्वार्थसाधिका सिद्धि प्रदायिनी देवी॥ 🙅 देवी जगदम्बा ने ‘सिद्धिदात्री’ का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के इस स्वरूप की उपासना करने के लिए लालायित रहते हैं। भगवान् शिव ने इसी शक्ति की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। जो भी हृदय से ‘सिद्धिदात्री’ देवी जी की भक्ति करता है मां उस पर अपना अपार स्नेह दर्शाती हैं। ‘शैलपुत्री’ से लेकर ‘सिद्धिदात्री’ देवी तक नवदुर्गा का यह पर्यावरण वैज्ञानिक चिन्तन व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को नवशक्ति प्रदान करे। पर्यावरण की अधिष्ठात्री प्रकृति परमेश्वरी का नवविध स्वरूप हमारे विश्व पर्यावरण की रक्षा करे। 🎁 माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कु...

18 पुराण के नाम और उनका महत्त्व पुराण के लक्षण उपपुराण अन्यपुराण तथा ग्रन्थ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में

१८  पुराण के नाम और उनका महत्त्व   महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में पुराण अठारह हैं। ​​मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् । ​​अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ॥ म-2, भ-2, ब्र-3, व-4 ।​ अ-1,ना-1, प-1, लिं-1, ग-1, कू-1, स्क-1 ॥ विष्णु पुराण के अनुसार उनके नाम ये हैं—विष्णु, पद्म, ब्रह्म, वायु(शिव), भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड और भविष्य। ब्रह्म पुराण पद्म पुराण विष्णु पुराण वायु पुराण  -- ( शिव पुराण ) भागवत पुराण  -- ( देवीभागवत पुराण ) नारद पुराण मार्कण्डेय पुराण अग्नि पुराण भविष्य पुराण ब्रह्म वैवर्त पुराण लिङ्ग पुराण वाराह पुराण स्कन्द पुराण वामन पुराण कूर्म पुराण मत्स्य पुराण गरुड़ पुराण ब्रह्माण्ड पुराण पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक पुराण में अठारहो पुराणों के नाम और उनकीश्लोकसंख्या है। नाम और श्लोकसंख्या प्रायः सबकी मिलती है, कहीं कहीं भेद है। जैसे कूर्म पुराण में अग्नि के स्थान में वायुपुराण; मार्कंडेय पुराण में लिंगपुराण के स्थान में नृसिंहपुराण; दे...