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सिद्धिदात्री,नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’



नवमं सिद्धिदात्री च 
 नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’ 💐
॥देवी का नौवां स्वरूप ‘सिद्धिदात्री’ ॥
॥सर्वार्थसाधिका सिद्धि प्रदायिनी देवी॥
🙅
देवी जगदम्बा ने ‘सिद्धिदात्री’ का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के इस स्वरूप की उपासना करने के लिए लालायित रहते हैं। भगवान् शिव ने इसी शक्ति की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। जो भी हृदय से ‘सिद्धिदात्री’ देवी जी की भक्ति करता है मां उस पर अपना अपार स्नेह दर्शाती हैं। ‘शैलपुत्री’ से लेकर ‘सिद्धिदात्री’ देवी तक नवदुर्गा का यह पर्यावरण वैज्ञानिक चिन्तन व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को नवशक्ति प्रदान करे। पर्यावरण की अधिष्ठात्री प्रकृति परमेश्वरी का नवविध स्वरूप हमारे विश्व पर्यावरण की रक्षा करे।🎁
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में 18 प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है जैसे 1. सर्वकामावसायिता 2. सर्वज्ञत्व 3. दूरश्रवण 4. परकायप्रवेशन 5. वाक्सिद्धि 6. कल्पवृक्षत्व 7. सृष्टि 8. संहारकरणसामर्थ्य 9. अमरत्व 10 सर्वन्यायकत्व इत्यादि। यह देवी इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं।‘सिद्धिदात्री’ देवी की पूजा से भक्तों को ये समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान् शिव ने इसी शक्ति की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं और वे ‘अर्द्धनारीश्वर’ कहलाए। दुर्गा के इस स्वरूप की देव, ऋषि, सिद्ध, योगी, साधक व भक्त मोक्ष प्राप्ति के लिए उपासना करते हैं।
देवी ‘सिद्धिदात्री’ का रूप अत्यंत सौम्य है।देवी की चार भुजाएं हैं। दायीं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है, मां बांयी भुजा में शंख और कमल का पुष्प है। ‘सिद्धिदात्री’ देवी कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं। देवी जगदम्बा ने ‘सिद्धिदात्री’ का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है।देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के इस स्वरूप की उपासना करने के लिए लालायित रहते हैं। जो भी हृदय से ‘सिद्धिदात्री’ देवी जी की भक्ति करता है मां उस पर अपना अपार स्नेह दर्शाती हैं। नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। माँ सिद्धिदात्री के कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ साधक विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ के चरणों का परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। ऐसा माना गया है कि माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला होता है।
देवी ‘सिद्धिदात्री’ का मंत्र
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“या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।”
देवी ‘सिद्धिदात्री’ का ध्यान

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“वन्दे वांछितमनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजां सिद्धिदात्रीं यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शंख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धिदात्रीं भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्लवदना पल्लवाधरां कांतकपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटिनिम्ननाभि–नितम्बनीम्॥”
‘सिद्धिदात्री’ का स्तोत्र
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“कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तु ते॥
पटाम्बरपरिधानां नानालंकारभूषितां।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धिदात्री नमोऽस्तु ते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोऽस्तु ते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्वार्चिता विश्वातीता सिध्दिदात्री नमोऽस्तु ते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागरतारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तु ते॥
धर्मार्थकामप्रदायिनी महामोहविनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धिदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तु ते॥”
देवी ‘सिद्धिदात्री’ का कवच

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“ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदा पातु नभो, गुहो च पादयोः॥
ललाटकर्णो श्रीं बीजं पातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्ववदनः॥”
‘सिद्धिदात्री’ का पर्यावरण वैज्ञानिक स्वरूप
🎁
विश्व के सभी कार्यों को साधने वाली देवी के इस रूप को सर्वार्थसाधिका प्रकृति के संदर्भ में भी देखा जा सकता है। मैंने पिछली पोस्टों में बताया है कि वासंतिक नवरात्र की शुरुआत चैत्र और वैशाख के महीने से होती है। वसन्त ऋतु के आगमन पर चारों ओर हरियाली और फूलों की बहार छाई रहती है। ऐसे हर्षोल्लास के वातावरण में ‘प्रकृति’ परमेश्वरी का सात्विक और आह्लादक स्वरूप देखने योग्य ही बनता है। सत्व ‘प्रकृति’ से ही सृष्टि का संरक्षण और लोक कल्याण होता है। लोक सर्वार्थसाधिका इसी सौम्य और सात्विक प्रकृति की सदा कामना करता आया है।
‘नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’ का पर्यावरण चिन्तन
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नवरात्र चाहे वासन्तिक हो या शारदीय दोनों में प्रकृति परमेश्वरी के नौ रूपों की विशेष पूजा–अर्चना की जाती है। दुर्गाकवच के अनुसार देवी के ये नौ रूप हैं-
1- शैलपुत्री, 2- ब्रह्मचारिणी, 3- चन्द्रघण्टा, 4- कूष्माण्डा, 5- स्कन्दमाता, 6- कात्यायनी, 7- कालरात्रि, 8- महागौरी 9- सिद्धिदात्री-
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“प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारणी।
तृतीयं चंद्रघंटेति कुष्मांनडेति चतुर्थकम॥
पंचमं स्कन्दमातेती षष्ठम कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।”
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हमने इन वासन्तिक नवरात्रों में लगातार नौ दिनों तक ‘नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’ के परिप्रेक्ष्य में प्रकृति परमेश्वरी के नौ रूपों से जन जन का प्रत्यक्ष साक्षात्कार कराने का प्रयास किया है। प्रयास यह भी रहा है कि ‘नवदुर्गाः’ के देवशास्त्रीय चरित्र के साथ साथ उसके पर्यावरण वैज्ञानिक स्वरूप से भी लोग अवगत हो सकें जिसे धार्मिक कर्मकांडों की आड़ में आज भुला दिया गया है। पर्यावरण वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो ‘शैलपुत्री’- सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहिला स्वरूप हैं। पत्थर मिटटी जल वायु अग्नि आकाश सब ‘शैलपुत्री’ का प्रथम रूप हैं। इस प्रधान रूप की उपासना का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा की अनुभूति करना। देवी का दूसरा रूप ‘ब्रह्मचारिणी’ का है यानी जड़ में भी ज्ञान अथवा चेतना का दर्शन करना। ‘चंद्रघंटा’-भगवती का तीसरा रूप है जब जड़ और चेतन जीव में नाद के रूप में वाणी प्रकट होती है। मनुष्य में यह वाणी ‘वैखरी’ वाक् कहलाती है।
‘कुष्मांडा’- अर्थात अंडे को धारण करने वाली देवी की चौथी सृजनात्मिका शक्ति जो स्त्री ओर पुरुष के अतिरिक्त कीट–पतंगों,वनस्पतियों आदि समस्त प्राणीमात्र में विद्यमान गर्भधारण और गर्भाधान की शक्ति है। देवी का पांचवां रूप ‘स्कन्दमाता’- पुत्रवती माता का स्वरूप है और छटा स्वरूप ‘कात्यायनी’- पुत्रीवती माता का। ‘कालरात्रि’- देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़–चेतन विनाश अथवा मृत्यु को प्राप्त होते हैं। भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं। परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप प्रत्यक्ष रूप से सुलभ नहीं हैं। इन्हें ज्ञान, भक्ति और योगसाधना द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। सौम्य प्रकृति और गौर वर्ण वाला ‘महागौरी’ का आठवां स्वरूप ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जा सकता है। देवी का नौवां और अन्तिम स्वरूप ‘सिद्धिदात्री’ का है।अत्यंत ही दुर्लभ देवी के इस स्वरूप को प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है।
‘शैलपुत्री’ से लेकर ‘सिद्धिदात्री’ देवी तक नवदुर्गा का यह पर्यावरण वैज्ञानिक चिन्तन व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को नवशक्ति प्रदान करे। पर्यावरण की अधिष्ठात्री प्रकृति परमेश्वरी का स्वरूप हमारे विश्व पर्यावरण की रक्षा करे और हमसे जाने या अनजाने में जो कोई भी गलती हुई है या प्रकृति विरोधी अपराध हुआ है तो मां ‘सिद्धिदात्री’ उसे क्षमा कर दें-
“तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे।
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।।”
“सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”

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