Skip to main content


अतितॄष्णा न कर्तव्या
तॄष्णां नैव परित्यजेत्।
शनै: शनैश्च भोक्तव्यं
स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥

अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये॥

Comments

Popular posts from this blog

प्राचीनकाल की महत्वपूर्ण पुस्तकें in Sanskrit

1-अस्टाध्यायी - पांणिनी 2-रामायण - वाल्मीकि 3-महाभारत - वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र - चाणक्य 5-महाभाष्य - पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र- नागार्जुन 7-बुद्धचरित - अश्वघोष 8-सौंदरानन्द - अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र - वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता - भास 11-कामसूत्र - वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम् - कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्- कालिदास 14-विक्रमोउर्वशियां - कालिदास 15-मेघदूत - कालिदास 16-रघुवंशम् - कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम् - कालिदास 18-नाट्यशास्त्र - भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम - विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम् - शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त - आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता - बरामिहिर 23-पंचतंत्र। - विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर - सोमदेव 25-अभिधम्मकोश - वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस - विशाखदत्त 27-रावणवध। - भटिट 28-किरातार्जुनीयम् - भारवि 29-दशकुमारचरितम् - दंडी 30-हर्षचरित - वाणभट्ट 31-कादंबरी - वाणभट्ट 32-वासवदत्ता - सुबंधु 33-नागानंद - हर्षवधन 34-रत्नावली - हर्षवर्धन 35-प्रियदर्शिका - हर्षवर्धन 36-मालतीमाधव - भवभूति 37-पृथ्वीराज विजय - जयानक 38-कर्पूरमंजरी - राजशेखर 39-काव्यमीमांसा -...

सिद्धिदात्री,नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’

नवमं सिद्धिदात्री च   नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’  💐 ॥देवी का नौवां स्वरूप ‘सिद्धिदात्री’ ॥ ॥सर्वार्थसाधिका सिद्धि प्रदायिनी देवी॥ 🙅 देवी जगदम्बा ने ‘सिद्धिदात्री’ का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के इस स्वरूप की उपासना करने के लिए लालायित रहते हैं। भगवान् शिव ने इसी शक्ति की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। जो भी हृदय से ‘सिद्धिदात्री’ देवी जी की भक्ति करता है मां उस पर अपना अपार स्नेह दर्शाती हैं। ‘शैलपुत्री’ से लेकर ‘सिद्धिदात्री’ देवी तक नवदुर्गा का यह पर्यावरण वैज्ञानिक चिन्तन व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को नवशक्ति प्रदान करे। पर्यावरण की अधिष्ठात्री प्रकृति परमेश्वरी का नवविध स्वरूप हमारे विश्व पर्यावरण की रक्षा करे। 🎁 माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कु...

18 पुराण के नाम और उनका महत्त्व पुराण के लक्षण उपपुराण अन्यपुराण तथा ग्रन्थ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में

१८  पुराण के नाम और उनका महत्त्व   महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में पुराण अठारह हैं। ​​मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् । ​​अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ॥ म-2, भ-2, ब्र-3, व-4 ।​ अ-1,ना-1, प-1, लिं-1, ग-1, कू-1, स्क-1 ॥ विष्णु पुराण के अनुसार उनके नाम ये हैं—विष्णु, पद्म, ब्रह्म, वायु(शिव), भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड और भविष्य। ब्रह्म पुराण पद्म पुराण विष्णु पुराण वायु पुराण  -- ( शिव पुराण ) भागवत पुराण  -- ( देवीभागवत पुराण ) नारद पुराण मार्कण्डेय पुराण अग्नि पुराण भविष्य पुराण ब्रह्म वैवर्त पुराण लिङ्ग पुराण वाराह पुराण स्कन्द पुराण वामन पुराण कूर्म पुराण मत्स्य पुराण गरुड़ पुराण ब्रह्माण्ड पुराण पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक पुराण में अठारहो पुराणों के नाम और उनकीश्लोकसंख्या है। नाम और श्लोकसंख्या प्रायः सबकी मिलती है, कहीं कहीं भेद है। जैसे कूर्म पुराण में अग्नि के स्थान में वायुपुराण; मार्कंडेय पुराण में लिंगपुराण के स्थान में नृसिंहपुराण; दे...