धनु लग्न-गुण स्वभाव, स्वास्थ्य-रोग, शिक्षा एवं कैरियर आदि शारीरिक गठन एवं व्यक्तित्त्व धनु लग्न कुंडली में गुरु एवं सूर्य शुभस्थ हो तो जातक का ऊंचा लंबा कद, संतुलित एवं सुगठित शरीर, सुंदर गेहूंआ रंग, किंचित चौड़ी एवं अंडाकार मुखाकृति, चौड़ा एवं ऊंचा माथा, प्राय लंबी नाक एवं लंबी पुष्ट गर्दन, बादाम जैसी आकृति की चमकदार आंखें, बड़े किंतु सुंदर मजबूत दांत, बौद्धिकता के प्रतिक बड़े कान, श्वेत पीत वर्ण (यदि लग्न में मंगल की दृष्टि आदि का योग हो तो श्वेत लालिमा मिश्रित वर्ण) तथा ऐसा जातक सौम्य, हंसमुख, आकर्षक, सुंदर एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला होगा। चारित्रिक एवं स्वभावगत विशेषताएं धनु लग्न अग्नि तत्व राशि तथा लग्न स्वामी गुरु शुभ होने से जातक अत्यंत बुद्धिमान, परिश्रमी, स्वाभिमानी, पराक्रमी, साहसी, धर्म परायण, इनमें अच्छे बुरे एवं दूसरों के भावों को जान लेने की विशेष क्षमता होगी, जातक स्पष्ट वक्ता, इमानदार, न्यायप्रिय, व्यवहार कुशल, उदार हृदय, मिलनसार, नरम दिल, सिद्धांतवादी एवं अध्ययन शील प्रकृति का होता है। यदि सूर्य भी शुभस्थ हो तो जातक कुल में श्रेष्ठ, भाग्यशाली तथा इनकी बौद्धिक एव...
स्वस्तिवाचन स्वस्तिवाचन (स्वस्तयन) मन्त्र और अर्थ हमारे देश की यह प्राचीन परंपरा रही है कि जब कभी भी हम कोई कार्य प्रारंभ करते है, तो उस समय मंगल की कामना करते है और सबसे पहले मंगल मूर्ति गणेश की प्रार्थना करते है। श्रीगणेश का अर्थ होता है कि जब हम किसी कार्य को आरंभ करते है तो इसी नाम के साथ उस कार्य की शुरुआत करते है। जय गणेश का अर्थ होता है कि अब यह कार्य यहां समाप्त हो रहा है। प्राचीनकाल से ही वैदिक मंत्रों में जितनी ऋचाएं आई है,उनके चिन्तन, वाचन से अलौकिक दिव्य शक्ति की प्राप्ति होती है, मन शान्त होता है। किसी भी शुभ कार्य के प्रारम्भ में, विवाह मण्डप पर , शगुन और तिलक में भी इसकी प्रथा है, या फिर जब कभी भी हम कोई मांगलिक कार्य करते है तो स्वस्तिवाचन की परंपरा रही है। यह एक गहरा विज्ञान है, हमारा धर्म, हमारी संस्कृति,वैदिक ऋचाएं, वैदिक मंत्र, पुराण उपनिषद आदि इन सभी ग्रन्थों के पीछे एक बहुत बड़ा विज्ञान है। हमारे ऋषियों ने जिन वैदिक ऋचाओं और पुराणों की कल्पना की, उपनिषदों के बारे में सोचा था फिर मांगलिक कार्यो के लिए जैसी व्यवस्था की, वह हमारे विज्ञान से किसी भी तरह से अल...