Skip to main content

भागवत पुराण में दर्ज़ है गर्भधारण का पूरा विज्ञान, पढ़ें एक आश्चर्यजनक खोज


गर्भ में शिशु का निर्माण
इंसान के जन्म की कहानी भी कितनी अद्भुत है। विज्ञान के अनुसार जब स्त्री के अंडाणु का पुरुष के शुक्राणु के द्वारा निषेचन होता है, तब गर्भ में एक शिशु का निर्माण होता है। धीरे-धीरे उसके शरीर के अंग बनते हैं, बाहरी अंगों के साथ अंदरूनी अंग भी पनपते हैं। एक लम्बा समय काटकर वह मां के गर्भ से बाहर आता है।
गर्भधारण के पहले दिन से आखिरी दिन तक
साइंस में यह सब प्रक्रिया बड़े सुचारू रूप से समझाई गई है। स्त्री के गर्भधारण करने के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन तक गर्भ के भीतर होने वाले प्रत्येक परिवर्तन को विस्तार से समझाया है विज्ञान ने। वैज्ञानिक भाषा में इस प्रक्रिया को भ्रूणविज्ञानकहा जाता है।
भागवत पुराण में भ्रूण विज्ञान
लेकिन आधुनिक विज्ञान से वर्षों पहले ही भागवत पुराण में भ्रूण विज्ञान का उल्लेख कर दिया गया था। कपिल मुनि द्वारा एक शिशु के जन्म की कहानी का वर्णन भागवत पुराण में विस्तारित रूप से किया गया है। कपिल मुनि द्वारा यह तथ्य भागवत पुराण में महाभारत की घटना के काफी बाद लिखे गए थे।
बच्चे भगवान का तोहफा
लेकिन फिर भी यह समय आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा भ्रूण विज्ञान की व्याख्या से हज़ारों वर्षों पहले का था। जब तक आधुनिक विज्ञान द्वारा इस तथ्य को परिभाषित नहीं किया गया था, तब तक पश्चिमी देशों का भी यह मानना था कि बच्चे भगवान द्वारा इंसान को दिया हुआ एक तोहफा हैं। भगवान की मर्जी से ही इनका धरती पर आगमन होता है। लेकिन भागवत पुराण में इसके विपरीत तथ्य शामिल हैं।
स्त्री बीज की व्याख्या
भागवत पुराण में रज एवं रेत का उल्लेख किया गया है। यहां रज से तात्पर्य स्त्री बीज है तथा रेत का अर्थ है पुरुष का वीर्य। और इन दोनों के मेल को कलाल कहा गया है। कलाल एक ऐसा शब्द है जो स्त्री बीज के वीर्य से मिलाप के बाद होने वाली सम्पूर्णता को दर्शाता है, जिसके बाद ही संतान के गर्भ में होने का पता लगता है।
कपिल मुनि की खोज
भागवत पुराण में दिए गए इस उल्लेख के वर्षों बाद साइंस ने विभिन्न प्रकार के एक्स-रे और स्कैनिंग तरीके से यह पता लगाया कि किस प्रकार से गर्भ में बच्चे का जन्म होता है। लेकिन कपिल मुनि द्वारा वर्षों पहले ही यह आविष्कार कर लिया गया था कि 12 घंटों के भीतर मां के गर्भ में कलाल का निर्माण हो जाता है। भागवत पुराण के इस तथ्य को विज्ञान ने भी सही माना है।
अंडे का आकार
अब यह कलाल अगली पांच रातों का समय लेता है और फिर एक बुदबुदे में बदलता है। यहां बुदबुदे से यात्पर्य है एक प्रकार का बुलबुला। इसके बाद 10 दिनों में यह बुदबुदा एक कार्कंधु में बदल जाता है। इसके बाद और अगले 5 दिनों में यानी कि 15 दिनों के बाद यह कार्कंधु एक अंडे का आकार ले लेता है।
कपिल मुनि का ज्ञान
आश्चर्य की बात है कि आज साइंस भी ठीक इसी प्रकार से एक के बाद एक किस प्रकार से स्त्री के भ्रूण में बच्चे का विकास होता है, उसे समझाता है। यह तथ्य हमें बेहद अचंभित करते हैं कि एक ऐसे युग में जब तकनीक के नाम पर कुछ भी मौजूद नहीं था, तब भी कपिल मुनि ने अपने पराक्रम एवं ज्ञान से इतनी बड़ी जानकारी हासिल की थी।
एक महीने बाद
भागवत पुराण में दिए गए इस उल्लेख के अनुसार स्त्री के गर्भधारण करने के ठीक एक महीने बाद अथवा 31वें या फिर 32वें दिन गर्भ में पल रहा अंडा एक सिर का आकार ले लेता है। आज के आधुनिक युग में मशीनों की मदद से बच्चे का यह सिर आसानी से देखा जा सकता है।
दूसरा महीना
आगे भागवत पुराण का कहना है कि दूसरा महीना पूरा होने पर बच्चे के अन्य शारीरिक अंग बनना शुरू हो जाते हैं। और तीसरे महीने में तो शरीर पर बाल आने लगते हैं, नाखून निकल आते हैं और धीरे-धीरे हड्डियां एवं त्वचा अपना आकार लेने लगती हैं।
एक अजब अहसास
महज एक अंडे से बच्चे के इस आकार को बनता देखना एवं साथ ही स्त्री द्वारा महसूस कर सकना भी एक अजब ही अहसास है। यह वही स्त्री समझ सकती है जिसने महीनों तक अपने भीतर एक जीवित जान को रखा हो। इन सभी तथ्यों से अलग एक और तथ्य ऐसा है जिसने साइंस को भी काफी पीछे छोड़ दिया है।
3 महीने पूर्ण होते ही
भागवत पुराण के अनुसार महिला के गर्भ के भीतर पल रहे बच्चे का गुप्तांग तीसरे महीने के खत्म होते ही बन जाता है। वैसे तो यह गुप्तांग 8 हफ्तों के पूरे होने के बाद बनना शुरू हो जाते हैं, लेकिन 3 महीने पूर्ण होते ही इनका आकार अपने पूर्ण चरम पर पहुंच जाता है।
सात धातु का निर्माण
कपिल मुनि ने इसके बाद चौथे महीने का वर्णन पूर्ण आध्यात्मिक रूप से किया है। उनका कहना है कि चौथे महीने में गर्भ में पल रहे शिशु के सात धातु अपना रूप ले लेते हैं। यहां सात धातु से तात्पर्य है रस (शारीरिक कोशिकाएं), रक्त (खून), स्नायु (मांसपेशियां), मेद (चर्बी), अस्थि (हड्डियां), मज्ज (तान्त्रिका कोशिका) तथा शुक्र (प्रजनन ऊतक)।
पांचवें महीने में भूख-प्यास महसूस होना
भागवत पुराण में गर्भ में पल रहे बच्चे को चौथे के बाद पांचवें महीने में भूख-प्यास महसूस होने लगती है। इस तथ्य को विज्ञान ने भी सराहा है। विज्ञान भी मानता है कि पांचवें महीने में जिस भी प्रकार का अन्न, जल, खाद्य पदार्थ मां लेती है, वही बच्चे द्वारा ग्रहण किया जाता है।
छठा महीना
गर्भवती महिला के लिए छठा महीना भी बेहद अहम माना जाता है। यह वह महीना है जब भ्रूण अंदर घूमने लगता है। यह तथ्य भागवत पुराण में मौजूद है, जिसे विज्ञान भी मानता है लेकिन इसके बाद सातवें महीने के तथ्य को विज्ञान आज तक समझ नहीं पाया है या फिर आज भी वह इस खोज से कोसों दूर है।
सातवें महीने में बच्चे का दिमाग काम करता है
भागवत पुराण के अनुसार गर्भ धारण के सातवें महीने में जब बच्चे का दिमाग काम करने लग जाता है तो वह अपने पूर्व जन्म को याद करता है। पूर्व जन्म की कहानियां उसके दिमाग में जगह बनाने लगती हैं। इसके साथ ही वर्तमान में वह गर्भ के भीतर जो ज़िंदगी जी रहा है, उसकी यादें भी उसके मस्तिष्क में भरने लगती हैं, लेकिन साइंस इन तथ्यों को नहीं मानता।
पूर्व एवं पुनर्जन्म की यादें
साइंस का कहना है कि सातवें माह में शिशु का दिमाग जरूर काम करने लग जाता है, किन्तु पूर्व एवं पुनर्जन्म से संबंधित बातों को साइंस खारिज करता है। साइंस का कहना है कि यदि यह यादें दिमाग में भर जाती हैं तो जन्म होने के बाद शिशु कैसे सब भूल जाता है।
पीड़ा मिलने से भूल जाता है
इसका जवाब भी भागवत पुराण में दिया गया है। भागवत पुराण के अनुसार जन्म के समय बच्चा तमाम पीड़ा से होकर गुजरता है। गर्भ से बाहर आते समय सबसे ज्यादा यदि उसके किसी अंग को कष्ट पहुंचता है तो वह है उसका सिर। उसके सिर को मिलने वाली पीड़ा उसके दिमाग पर गहरा असर करती है, जिसकी वजह से वह कुछ याद नहीं रख पाता है।
आठवां और नौवां महीना
इसके बाद कपिल मुनि बताते हैं कि आठवें महीने में शिशु अपने सिर और पीठ को मोड़कर मां के गर्भ में बैठा हुआ होता है। इसके बाद नौवें महीने में वह सांस लेना शुरू कर देता है। बच्चे को ऑक्सीजन और आहार अपनी माता द्वारा ही प्राप्त होता है और फिर दसवें महीने में प्रसूति वायु द्वारा शिशु को नीचे की ओर धकेला जाता है। इसके बाद ही मां बच्चे को जन्म देती है।
शारीरिक क्रोमोसोम
भागवत पुराण में साइंस की प्रसिद्ध परिभाषा क्रोमोसोम यानी कि गुणसूत्र पर भी विस्तार से व्याख्या दी गई है। इसका मानना है कि पुरुष के 23 क्रोमोसोम एवं महिला के 23 क्रोमोसोम मिलकर ही एक शिशु का निर्माण करते हैं। यही तथ्य साइंस द्वारा भी ग्रहण किया गया है। लेकिन एक ऐसा समय भी था जब 23 की बजाय 24 क्रोमोसोम के उपस्थित होने का दावा किया जाता था।
लेकिन 24वां गुणसूत्र भी है
पौराणिक तथ्यों के आधार पर भी ऐसी ही एक दुविधा शामिल है। जहां भागवत पुराण 23 गुणसूत्र होने का दावा करता है, वहीं दूसरी ओर महाभारत के अनुसार 24 गुणविधियां हैं जिसमें से आखिरी है प्रकृति। वर्षों बाद विज्ञान द्वारा भी 23 या 24 गुणसूत्र होने जैसी अव्यवस्था का सामना किया गया।
दुविधा की बात
जिन वैज्ञानिकों ने शरीर में 24 क्रोमोसोम होने का दावा किया उन्हें विज्ञान द्वारा नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया। वर्ष 1962 तक तो स्कूल की किताबों में भी शरीर में 24 क्रोमोसोम होने का वर्णन किया जाता था, लेकिन बाद में कुछ अन्य वैज्ञानिकों के शोध ने 24 की बजाय 23 क्रोमोसोम होने का दावा किया।
महाभारत युग में भी
जिसके बाद से इसे अपना भी लिया गया लेकिन इन नए वैज्ञानिकों को किसी भी प्रकार का नोबेल पुरस्कार नहीं मिला। जिस प्रकार की अव्यवस्था आज के समय में विज्ञान ने देखी है, हो सकता है यही दुविधा उस युग में भी हुई होगी, जब महाभारत और भागवत पुराण के तथ्यों में अंतर पाया गया।


Comments

Popular posts from this blog

प्राचीनकाल की महत्वपूर्ण पुस्तकें in Sanskrit

1-अस्टाध्यायी - पांणिनी 2-रामायण - वाल्मीकि 3-महाभारत - वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र - चाणक्य 5-महाभाष्य - पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र- नागार्जुन 7-बुद्धचरित - अश्वघोष 8-सौंदरानन्द - अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र - वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता - भास 11-कामसूत्र - वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम् - कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्- कालिदास 14-विक्रमोउर्वशियां - कालिदास 15-मेघदूत - कालिदास 16-रघुवंशम् - कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम् - कालिदास 18-नाट्यशास्त्र - भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम - विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम् - शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त - आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता - बरामिहिर 23-पंचतंत्र। - विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर - सोमदेव 25-अभिधम्मकोश - वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस - विशाखदत्त 27-रावणवध। - भटिट 28-किरातार्जुनीयम् - भारवि 29-दशकुमारचरितम् - दंडी 30-हर्षचरित - वाणभट्ट 31-कादंबरी - वाणभट्ट 32-वासवदत्ता - सुबंधु 33-नागानंद - हर्षवधन 34-रत्नावली - हर्षवर्धन 35-प्रियदर्शिका - हर्षवर्धन 36-मालतीमाधव - भवभूति 37-पृथ्वीराज विजय - जयानक 38-कर्पूरमंजरी - राजशेखर 39-काव्यमीमांसा -...

सिद्धिदात्री,नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’

नवमं सिद्धिदात्री च   नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः’  💐 ॥देवी का नौवां स्वरूप ‘सिद्धिदात्री’ ॥ ॥सर्वार्थसाधिका सिद्धि प्रदायिनी देवी॥ 🙅 देवी जगदम्बा ने ‘सिद्धिदात्री’ का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के इस स्वरूप की उपासना करने के लिए लालायित रहते हैं। भगवान् शिव ने इसी शक्ति की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। जो भी हृदय से ‘सिद्धिदात्री’ देवी जी की भक्ति करता है मां उस पर अपना अपार स्नेह दर्शाती हैं। ‘शैलपुत्री’ से लेकर ‘सिद्धिदात्री’ देवी तक नवदुर्गा का यह पर्यावरण वैज्ञानिक चिन्तन व्यक्ति, समाज व राष्ट्र को नवशक्ति प्रदान करे। पर्यावरण की अधिष्ठात्री प्रकृति परमेश्वरी का नवविध स्वरूप हमारे विश्व पर्यावरण की रक्षा करे। 🎁 माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कु...

18 पुराण के नाम और उनका महत्त्व पुराण के लक्षण उपपुराण अन्यपुराण तथा ग्रन्थ महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में

१८  पुराण के नाम और उनका महत्त्व   महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों के बारें में पुराण अठारह हैं। ​​मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् । ​​अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ॥ म-2, भ-2, ब्र-3, व-4 ।​ अ-1,ना-1, प-1, लिं-1, ग-1, कू-1, स्क-1 ॥ विष्णु पुराण के अनुसार उनके नाम ये हैं—विष्णु, पद्म, ब्रह्म, वायु(शिव), भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड और भविष्य। ब्रह्म पुराण पद्म पुराण विष्णु पुराण वायु पुराण  -- ( शिव पुराण ) भागवत पुराण  -- ( देवीभागवत पुराण ) नारद पुराण मार्कण्डेय पुराण अग्नि पुराण भविष्य पुराण ब्रह्म वैवर्त पुराण लिङ्ग पुराण वाराह पुराण स्कन्द पुराण वामन पुराण कूर्म पुराण मत्स्य पुराण गरुड़ पुराण ब्रह्माण्ड पुराण पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक पुराण में अठारहो पुराणों के नाम और उनकीश्लोकसंख्या है। नाम और श्लोकसंख्या प्रायः सबकी मिलती है, कहीं कहीं भेद है। जैसे कूर्म पुराण में अग्नि के स्थान में वायुपुराण; मार्कंडेय पुराण में लिंगपुराण के स्थान में नृसिंहपुराण; दे...