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Showing posts from March, 2017

एकदन्तशरणागतिस्तोत्रम्

श्रीगणेशाय नमः ।  देवर्षय ऊचुः ।  सदात्मरूपं सकलादिभूतममायिनं सोऽहमचिन्त्यबोधम् ।  अनादिमध्यान्तविहीनमेकं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ १॥  अनन्तचिद्रूपमयं गणेशमभेदभेदादिविहीनमाद्यम् ।  हृदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ २॥  समाधिसंस्थं हृदि योगिनां यं प्रकाशरूपेण विभातमेतम् ।  सदा निरालम्बसमाधिगम्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ३॥  स्वबिम्बभावेन विलासयुक्तां प्रत्यक्षमायां विविधस्वरूपाम् ।  स्ववीर्यकं तत्र ददाति यो वै तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ४॥  त्वदीयवीर्येण समर्थभूतस्वमायया संरचितं च विश्वम् ।  तुरीयकं ह्यात्मप्रतीतिसंज्ञं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ५॥  स्वदीयसत्ताधरमेकदन्तं गुणेश्वरं यं गुणबोधितारम् ।  भजन्तमत्यन्तमजं त्रिसंस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ६॥  ततस्वया प्रेरितनादकेन सुषुप्तिसंज्ञं रचितं जगद्वै ।  समानरूपं ह्युभयत्रसंस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ७॥  तदेव विश्वं कृपया प्रभूतं द्विभावमादौ तमसा विभान्तम् ।  अनेकरूपं च तथैकभूतं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ॥ ८॥  ततस्त्वया प्रेरितकेन...

रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य

1:~मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है। 2:~मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है। 3:~मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है। 4:~मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है। 5:~मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है। 6:~मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है। 7:~मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है। 8:~मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है। 9:~मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है। 10:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे। 11:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं। 12:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है। 13:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है। 14:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है। 15:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है। 16:~मानस में छन्द संख्या = 86 है। 17:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का। 18:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में। 19:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी। 20:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी। 21:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला। 22:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला। 23:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ। 24:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं। 25:~त्रिजटा के पिता = विभीषण है...

प्राचीनकाल की महत्वपूर्ण पुस्तकें in Sanskrit

1-अस्टाध्यायी - पांणिनी 2-रामायण - वाल्मीकि 3-महाभारत - वेदव्यास 4-अर्थशास्त्र - चाणक्य 5-महाभाष्य - पतंजलि 6-सत्सहसारिका सूत्र- नागार्जुन 7-बुद्धचरित - अश्वघोष 8-सौंदरानन्द - अश्वघोष 9-महाविभाषाशास्त्र - वसुमित्र 10- स्वप्नवासवदत्ता - भास 11-कामसूत्र - वात्स्यायन 12-कुमारसंभवम् - कालिदास 13-अभिज्ञानशकुंतलम्- कालिदास 14-विक्रमोउर्वशियां - कालिदास 15-मेघदूत - कालिदास 16-रघुवंशम् - कालिदास 17-मालविकाग्निमित्रम् - कालिदास 18-नाट्यशास्त्र - भरतमुनि 19-देवीचंद्रगुप्तम - विशाखदत्त 20-मृच्छकटिकम् - शूद्रक 21-सूर्य सिद्धान्त - आर्यभट्ट 22-वृहतसिंता - बरामिहिर 23-पंचतंत्र। - विष्णु शर्मा 24-कथासरित्सागर - सोमदेव 25-अभिधम्मकोश - वसुबन्धु 26-मुद्राराक्षस - विशाखदत्त 27-रावणवध। - भटिट 28-किरातार्जुनीयम् - भारवि 29-दशकुमारचरितम् - दंडी 30-हर्षचरित - वाणभट्ट 31-कादंबरी - वाणभट्ट 32-वासवदत्ता - सुबंधु 33-नागानंद - हर्षवधन 34-रत्नावली - हर्षवर्धन 35-प्रियदर्शिका - हर्षवर्धन 36-मालतीमाधव - भवभूति 37-पृथ्वीराज विजय - जयानक 38-कर्पूरमंजरी - राजशेखर 39-काव्यमीमांसा -...

ब्राह्मण क्यों देवता ?

ब्राह्मण क्यों देवता ? •पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे । सागरे  सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।। चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः  । सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया  ।। अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि । नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।। •अर्थात पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी ब्राह्मण के दक्षिण पैर में  है । चार वेद उसके मुख में हैं  अंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं इसवास्ते ब्राह्मण को पूजा करने से सब देवों का पूजा होती है । पृथ्वी में ब्राह्मण जो है विष्णु रूप है इसलिए  जिसको कल्याण की इच्छा हो वह ब्राह्मणों का अपमान तथा द्वेष  नहीं करना चाहिए । •देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता: । ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना:तस्माद् ब्राह्मण देवता । •अर्थात् सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मन्त्रों के अधीन हैं और मन्त्र ब्राह्मण के अधीन हैं इस कारण ब्राह्मण देवता हैं ।     उत्तम ब्रा...

आर्त्तत्राणस्तोत्रम् अप्पयदीक्षितविरचितम्

 अप्पयदीक्षितविरचितम् क्षीराम्भोनिधिमन्थनोद्भवविषात् सन्दह्यमानान् सुरान् ब्रह्मादीनवलोक्य यः करुणया हालाहलाख्यं विषम् ।  निःशङ्कं निजलीलया कवलयन् लोकान् ररक्षादरात् आर्त्तत्राणपरायणः स भगवान् गङ्गाधरो मे गतिः ॥ १॥  क्षीरं स्वादु निपीय मातुलगृहे गत्वा स्वकीयं गृहं क्षीरालाभवशेन खिन्नमनसे घोरं तपः कुर्वते ।  कारुण्यादुपमन्यवे निरवधिं क्षीराम्बुधिं दत्तवान् आर्त्तत्राणपरायणः स भगवान् गङ्गाधरो मे गतिः ॥ २॥  मृत्युं वक्षसि ताडयन् निजपदध्यानैकभक्तं मुनिं मार्कण्डेयमपालयत् करुणया लिङ्गाद्विनिर्गत्य यः । नेत्राम्भोजसमर्पणेन हरयेऽभीष्टं रथाङ्गं ददौ आर्त्तत्राणपरायणः स भगवान् गङ्गाधरो मे गतिः ॥ ३॥  ऊढं द्रोणजयद्रथादिरथिकैः सैन्यं महत् कौरवं दृष्ट्वा कृष्णसहायवन्तमपि तं भीतं प्रपन्नार्त्तिहा ।  पार्थं रक्षितवान् अमोघविषयं दिव्यास्त्रमुद्घोषयन् आर्त्तत्राणपरायणः स भगवान् गङ्गाधरो मे गतिः ॥ ४॥  बालं शैवकुलोद्भवं परिहसत्स्वज्ञातिपक्षाकुलं खिद्यन्तं तव मूर्ध्नि पुष्पनिचयं दातुं समुद्यत्करम् ।  दृष्ट्वाऽऽनम्य विरिञ्चिरम्यनगरे पूजां त्वदीयां भजन् आर्त्तत्राण...