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स्वस्तिवाचन स्वस्तिवाचन (स्वस्तयन) मन्त्र और अर्थ

स्वस्तिवाचन स्वस्तिवाचन (स्वस्तयन) मन्त्र और अर्थ हमारे देश की यह प्राचीन परंपरा रही है कि जब कभी भी हम कोई कार्य प्रारंभ करते है, तो उस समय मंगल की कामना करते है और सबसे पहले मंगल मूर्ति गणेश की प्रार्थना करते है।  श्रीगणेश का अर्थ होता है कि जब हम किसी कार्य को आरंभ करते है तो इसी नाम के साथ उस कार्य की शुरुआत करते है। जय गणेश का अर्थ होता है कि अब यह कार्य यहां समाप्त हो रहा है। प्राचीनकाल से ही वैदिक मंत्रों में जितनी ऋचाएं आई है,उनके चिन्तन, वाचन से अलौकिक दिव्य शक्ति की प्राप्ति होती है, मन शान्त होता है। किसी भी शुभ कार्य के प्रारम्भ में, विवाह मण्डप पर , शगुन और तिलक में भी इसकी प्रथा है, या फिर जब कभी भी हम कोई मांगलिक कार्य करते है तो स्वस्तिवाचन की परंपरा रही है। यह एक गहरा विज्ञान है, हमारा धर्म, हमारी संस्कृति,वैदिक ऋचाएं, वैदिक मंत्र, पुराण उपनिषद आदि इन सभी ग्रन्थों के पीछे एक बहुत बड़ा विज्ञान है। हमारे ऋषियों ने जिन वैदिक ऋचाओं और पुराणों की कल्पना की, उपनिषदों के बारे में सोचा था फिर मांगलिक कार्यो के लिए जैसी व्यवस्था की, वह हमारे विज्ञान से किसी भी तरह से अल...

सरस्वती पूजन कब है क्यों मानते है

बसंत पंचमी विद्या की देवी मॉं सरस्वती की आराधना का दिन है, इसे श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। यह समृद्धि और सद्भाव का पर्व है। बसंत पंचमी माघ माह की पंचमी तिथि पर मनाया जाने वाला पर्व है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व इस साल 22 जनवरी को मनाया जा रहा है। प्राकृतिक रूप से बसंत पंचमी का बड़ा महत्व है क्योंकि इस पर्व से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है और सर्दी कम होने लगती है। बसंत पंचमी पर हिन्दू धर्म के अनुनायी कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इस दिन देवी सरस्वती की पूजन का विशेष विधान है। हिन्दू धर्म में माता सरस्वती को ज्ञान, कला, संस्कृति और संगीत की देवी कहा जाता है।  सरस्वती पूजा का महत्व हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी का पर्व देवी सरस्वती को समर्पित है। क्योंकि इस दिन ही उनका जन्म हुआ था। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी सरस्वती को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री कहा गया है। वहीं एक अन्य मत के अनुसार उन्हें ब्रह्मा जी की स्त्री भी कहा जाता है। माता सरस्वती को विद्या की देवी कहते हैं। इनके आशीर्वाद से ज्ञान, विवेक, संगीत और कला में निपुणता मिलती...

जानें बसंत पंचमी पर पूजन का शुभ

बसंत पंचमी विद्या की देवी मॉं सरस्वती की आराधना का दिन है, इसे श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। यह समृद्धि और सद्भाव का पर्व है। बसंत पंचमी माघ माह की पंचमी तिथि पर मनाया जाने वाला पर्व है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व इस साल 22 जनवरी को मनाया जा रहा है। प्राकृतिक रूप से बसंत पंचमी का बड़ा महत्व है क्योंकि इस पर्व से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है और सर्दी कम होने लगती है। बसंत पंचमी पर हिन्दू धर्म के अनुनायी कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इस दिन देवी सरस्वती की पूजन का विशेष विधान है। हिन्दू धर्म में माता सरस्वती को ज्ञान, कला, संस्कृति और संगीत की देवी कहा जाता है।  जानें बसंत पंचमी पर पूजन का शुभ मुहूर्त: सरस्वती पूजा मुहूर्त

छठपर्व क्या होता है कैसे मनाया जाता है। कौन कौन कर सकता है ये पर्व पे क्या खाएं कैसे व्रत रहना चाहिए।

जानिए छठपर्व के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्त्व को बिहारवासियों ने जीवित रखा है 'भारतराष्ट्र'   की इस पुरातन सांस्कृतिक धरोहर  को समस्त देशवासियों को बिहारवासियों का विशेष आभारी होना चाहिए कि उन्होंने छठ पूजा के माध्यम से वैदिक आर्यों के धरोहर स्वरूप सूर्य संस्कृति की लोकपरंपरा को आज भी जीवित रखा है। छठ पर्व ‘भारतराष्ट्र’ की अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा पर्व है। छठ के अवसर पर अस्त होते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का यही निहितार्थ है कि समस्त प्रजाजनों का भरण-पोषण करने वाला असली राजा तो सूर्य है। वैदिक साहित्य में प्रजावर्ग का भरण-पोषण करने के कारण सूर्य को ‘भरत’ कहा गया है। यजुर्वेद के अनुसार सूर्य एक राष्ट्र भी है राष्ट्रपति भी। सूर्य की ‘भरत’ संज्ञा होने के कारण ही सूर्यवंशी आर्य भरतगण कहलाने लगे। बाद में इन्हीं सूर्य-उपासक भरतवंशियों से शासित यह देश भी ‘भारतवर्ष’ या ‘भारतराष्ट्र’ कहलाया। राजधानी दिल्ली में पूर्वांचल के महापर्व छठपूजा की तैयारियां पिछले एक महीने से जोर शोर से चल रही थीं। दिल्ली सरकार द्वारा नदी घाटों और जल संस्थानों को सुधारने संवारने...
अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्। शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥ अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये॥

भोर वंदनम्

  *भोर वंदनम् ! सुभाषितम् :- *खलः करोति दुर्वृत्तं, नूनं फलति साधुषु।* *दशाननो हरेत् सीतां, बन्धनं स्याद् महोदधेः॥ इति* *अर्थात:-* दुष्ट मानव गलत कार्य कारता है और उसका फ़ल अच्छे लोगों को भुगतना पडता है। जिस प्रकार रावण सीता का हरण करता है और सागर को बंधना पडता है।

पंचमं स्कन्दमातेति देवी का पांचवां स्वरूप : ‘स्कन्दमाता’ प्रकृति माता के समान वन्दनीया है

पंचमं स्कन्दमातेति  देवी का पांचवां स्वरूप : ‘स्कन्दमाता’ प्रकृति माता के समान वन्दनीया है 🎊 देवी का पांचवां रूप ‘स्कन्दमाता’ का है। आज प्रकृति परमेश्वरी के उसी स्वरूप की आराधना की जा रही है। शैलपुत्री ने ब्रह्मचारिणी बन कर तपस्या करने के बाद शिव से विवाह किया और बाद में ‘स्कन्द’ उनके पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ इसलिए इस देवी को 'स्कन्दमाता' कहते हैं। पौराणिक वर्णन के अनुसार इस देवी की तीन आंखें और चार भुजाएं हैं तथा गोद में 'स्कन्द' नामक बालक विराजमान है। ‘स्कन्दमाता’ नामक प्रकृति देवी की चार भुजाएं हैं। उन्होंने ऊपर वाली दो भुजाओं में ऐश्वर्य और समृद्धि का प्रतीक कमल पुष्प को धारण कर रखा है नीचे वाली दाहिनी भुजा से धनुर्धारी बालक 'स्कन्द' को पकड़ रखा है तथा बायीं भुजा वरदायी मुद्रामें दर्शाई गई है। नवरात्र के पांचवें दिन निम्न मंत्र से ‘स्कन्दमाता’ देवी का ध्यान करना चाहिए - “सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।” 💐 अर्थात् सदा सिहासन में विराजमान और दोनों हाथों में कमल पुष्पको धारण करने वाली यशस्विनी देवी ‘स्...