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छठपर्व क्या होता है कैसे मनाया जाता है। कौन कौन कर सकता है ये पर्व पे क्या खाएं कैसे व्रत रहना चाहिए।

जानिए छठपर्व के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राष्ट्रीय महत्त्व को बिहारवासियों ने जीवित रखा है 'भारतराष्ट्र'   की इस पुरातन सांस्कृतिक धरोहर  को समस्त देशवासियों को बिहारवासियों का विशेष आभारी होना चाहिए कि उन्होंने छठ पूजा के माध्यम से वैदिक आर्यों के धरोहर स्वरूप सूर्य संस्कृति की लोकपरंपरा को आज भी जीवित रखा है। छठ पर्व ‘भारतराष्ट्र’ की अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा पर्व है। छठ के अवसर पर अस्त होते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का यही निहितार्थ है कि समस्त प्रजाजनों का भरण-पोषण करने वाला असली राजा तो सूर्य है। वैदिक साहित्य में प्रजावर्ग का भरण-पोषण करने के कारण सूर्य को ‘भरत’ कहा गया है। यजुर्वेद के अनुसार सूर्य एक राष्ट्र भी है राष्ट्रपति भी। सूर्य की ‘भरत’ संज्ञा होने के कारण ही सूर्यवंशी आर्य भरतगण कहलाने लगे। बाद में इन्हीं सूर्य-उपासक भरतवंशियों से शासित यह देश भी ‘भारतवर्ष’ या ‘भारतराष्ट्र’ कहलाया। राजधानी दिल्ली में पूर्वांचल के महापर्व छठपूजा की तैयारियां पिछले एक महीने से जोर शोर से चल रही थीं। दिल्ली सरकार द्वारा नदी घाटों और जल संस्थानों को सुधारने संवारने...
अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्। शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥ अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये॥

भोर वंदनम्

  *भोर वंदनम् ! सुभाषितम् :- *खलः करोति दुर्वृत्तं, नूनं फलति साधुषु।* *दशाननो हरेत् सीतां, बन्धनं स्याद् महोदधेः॥ इति* *अर्थात:-* दुष्ट मानव गलत कार्य कारता है और उसका फ़ल अच्छे लोगों को भुगतना पडता है। जिस प्रकार रावण सीता का हरण करता है और सागर को बंधना पडता है।

पंचमं स्कन्दमातेति देवी का पांचवां स्वरूप : ‘स्कन्दमाता’ प्रकृति माता के समान वन्दनीया है

पंचमं स्कन्दमातेति  देवी का पांचवां स्वरूप : ‘स्कन्दमाता’ प्रकृति माता के समान वन्दनीया है 🎊 देवी का पांचवां रूप ‘स्कन्दमाता’ का है। आज प्रकृति परमेश्वरी के उसी स्वरूप की आराधना की जा रही है। शैलपुत्री ने ब्रह्मचारिणी बन कर तपस्या करने के बाद शिव से विवाह किया और बाद में ‘स्कन्द’ उनके पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ इसलिए इस देवी को 'स्कन्दमाता' कहते हैं। पौराणिक वर्णन के अनुसार इस देवी की तीन आंखें और चार भुजाएं हैं तथा गोद में 'स्कन्द' नामक बालक विराजमान है। ‘स्कन्दमाता’ नामक प्रकृति देवी की चार भुजाएं हैं। उन्होंने ऊपर वाली दो भुजाओं में ऐश्वर्य और समृद्धि का प्रतीक कमल पुष्प को धारण कर रखा है नीचे वाली दाहिनी भुजा से धनुर्धारी बालक 'स्कन्द' को पकड़ रखा है तथा बायीं भुजा वरदायी मुद्रामें दर्शाई गई है। नवरात्र के पांचवें दिन निम्न मंत्र से ‘स्कन्दमाता’ देवी का ध्यान करना चाहिए - “सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।” 💐 अर्थात् सदा सिहासन में विराजमान और दोनों हाथों में कमल पुष्पको धारण करने वाली यशस्विनी देवी ‘स्...

षष्ठं कात्यायनीति च’ देवी का छठा रूप: ‘कात्यायनी’ ॥ ॥ तपोवन संस्कृति की उद्भाविका देवी॥

षष्ठं कात्यायनीति च’  ॥ देवी का छठा रूप: ‘कात्यायनी’ ॥ ॥ तपोवन संस्कृति की उद्भाविका देवी॥ 🙅 आज तपोवन संस्कृति की उद्भाविका ‘कात्यायनी’ देवी के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना बहुत आवश्यक हो गया है ताकि जल, जंगल, जमीन से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों का निर्ममता पूर्वक दोहन रोका जा सके। प्रकृति को सम्मान देना तथा उसे एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित करना हमारा राष्ट्रधर्म होना चाहिए। 🎁 आज नवरात्र के छठे दिन देवी के छठे रूप ‘कात्यायनी’ ‘की पूजा-अर्चना की जा रही है।कात्यायनी देवी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय ‘कत ’नाम के प्रसिद्ध ॠषि के पुत्र ॠषि ‘कात्य’ हुए तथा उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध ‘कात्य’ गोत्र से उत्पन्न विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन हुए थे। पौराणिक मान्यता के अनुसार कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके आश्रम में ब्रह्मा, विष्णु और शिव के तेज से कात्यायनी देवी का प्रादुर्भाव हुआ था (वामनपुराण, 19.7)। महर्षि कात्यायन ने इनका पुत्री के रूप में पालन-पोषण किया तथा उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा ...

सप्तमं कालरात्रीति’ देवी का सातवां रूप :‘कालरात्रि’ प्राकृतिक प्रकोपों की अधिष्ठात्री देवी

 ‘सप्तमं कालरात्रीति’  देवी का सातवां रूप :‘कालरात्रि’ प्राकृतिक प्रकोपों की अधिष्ठात्री देवी  🎁 🎁 🎁 🎁 सुप्रभात मित्रो! आज नवरात्र की सातवीं तिथि पर देवी के सातवें रूप ‘कालरात्रि’ के स्वरूप की उपासना की जाती है। महाकाल की आदि शक्ति को भी ‘काली’ या ‘महाकाली’ के नाम से जाना जाता है।‘कालरात्रि’ का वर्ण अंधकार की भाँति काला है, केश बिखरे हुए हैं, कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है, माँ कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल व गोल हैं, जिनमें से बिजली की भाँति किरणें निकलती रहती हैं, इनकी नासिका से श्वास तथा निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। ‘कालरात्रि’ की आकृति विकराल है। जिह्वा बाहर निकाले हुए श्मशानवासिनी इस देवी के एक हाथ में खड्ग और दूसरे में नरमुण्ड रहता है। तीसरे हाथ में अभयदान की मुद्रा रहती है तो चौथा हाथ वरदान देने के भाव से ऊपर उठा रहता है। ‘शाक्त प्रमोद’ में विध्वंसकारी प्रकृति का प्रतिनिधित्व करने वाली ‘महाकाली’ का रूप ऐसा ही भयंकर दर्शाया गया है। यह कालरात्रि देवी ही महामाया भी हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा ह...

महागौरीति चाष्टमम्’ देवी का आठवां स्वरूप : ‘महागौरी’ ॥ ॥श्री समृद्धि व सौभाग्य प्रदायिनी देवी॥

 ‘महागौरीति चाष्टमम्’  ॥ देवी का आठवां स्वरूप : ‘महागौरी’ ॥ ॥श्री समृद्धि व सौभाग्य प्रदायिनी देवी॥ 🙅 ‘महागौरी’ ‘प्रकृति’ परमेश्वरी का सौम्य, सात्विक और आह्लादक स्वरूप है। सत्व ‘प्रकृति’ से ही सृष्टि का संरक्षण और लोक कल्याण होता है। इसी सौम्य और सात्विक प्रकृति की सदा लोक कामना करता है। हिमालय पर्वत पर इन्द्र आदि देवतागण जिस देवी की स्तुति कर रहे थे वह भी ‘महागौरी’ देवी का ही स्वरूप था। इसलिए ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ को व्यक्त करने वाली सुख समृद्धि तथा सौभाग्य प्रदायिनी इसी लोककल्याणी महाशक्ति की पूजा का दुर्गाष्टमी के दिन विशेष अनुष्ठान होता है। 🎁 दुर्गा देवी के नौ रूपों में आठवीं शक्ति ‘महागौरी’ स्वरूपा हैं। नवरात्र पूजा के आठवें दिन ‘महागौरी’ की पूजा अर्चना की जाती है। ‘महागौरी’ रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और सौम्य दिखती हैं। महागौरी की चार भुजाएं हैं उनकी दायीं भुजा अभय मुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में त्रिशूल शोभायमान है। बायीं भुजा में डमरू बजा रही है और नीचे वाली भुजा से देवी गौरी भक्तों को वरदान देती हैं।‘देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिस...